guru naman
१३ मई २०११ शाम ७.०० बजे रोज की तरह हमलोग शांति वन (न्यू कालोनी का पार्क) में theatrical exersise में व्यस्त थे कि अचानक साइलेंट मोड पर रखे फोन की स्क्रीन पर नजर पड़ी .
फ़ोन को ओन कर कानो से लगाया उस तरफ से खबर मिली बादल (सुधीन्द्र) सरकार नहीं रहे........
७०के दशक में बादल दा ने ही नाटक को साधारण जनों के करीब ला दिया, जनता और अभिनेताओ के बिच
कि बाधा (प्रोसीनियम) को दरकिनार कर गली, नुक्कड़, पार्क, छत जहा कही भी जगह मिले लोग जुटे
बादल दा ने अपने लिखे नाटको को अपनी संस्था के प्रशिक्छित कलाकारों के माध्यम से खेला .
फ़ोन को ओन कर कानो से लगाया उस तरफ से खबर मिली बादल (सुधीन्द्र) सरकार नहीं रहे........
७०के दशक में बादल दा ने ही नाटक को साधारण जनों के करीब ला दिया, जनता और अभिनेताओ के बिच
कि बाधा (प्रोसीनियम) को दरकिनार कर गली, नुक्कड़, पार्क, छत जहा कही भी जगह मिले लोग जुटे
बादल दा ने अपने लिखे नाटको को अपनी संस्था के प्रशिक्छित कलाकारों के माध्यम से खेला .
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