Posts

Showing posts from 2022

भारतीय मूकाभिनय के नक्षत्र : पद्मश्री निरंजन गोस्वामी

Image
मूकाभिनय गुरु पद्मश्री निरंजन गोस्वामी   माइम यानी मूकाभिनय आज भारत में एक प्रदर्शन कला विशेष के रूप में परिचित है। और इस परिचिय को दिलाने में जिन भारतीय कलाकारों का अथक परिश्रम है। उन्हीं में से एक हैं निरंजन गोस्वामी । भारत सरकार ने मूकाभिनय कला के लिए उनके द्वारा किया गए योगदान को सम्मानित करने के लिए उन्हें पद्म अलंकरण से भूषित किया है। यह जानना दिलचस्प है कि जैक्स कोपे कौमेडिया डेल'आर्टे और जापानी नोह थियेटर से बहुत अधिक प्रभावित थे और अपने अभिनेताओं को प्रशिक्षित करते समय नकाब का इस्तेमाल किया करते थे। उनका शिष्य  इटेने डेकरोक्स उनसे प्रभावित था। जो आगे चलकर माइम के विकासशील संभावनाओं का विकास करने लगा और कॉरपोरियल माइम का विकास मूर्तिकला शैली में किया, प्रकृतिवाद के एक विभाग के रूप में इसे प्रतिष्ठित किया। प्रशिक्षण के तरीकों द्वारा माइम और भौतिक थिएटर के विकास में जैक्स लेकौक ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।  भारत में माइम बीसवीं शताब्दी के मध्य में प्रचलित और पल्लवित होता गया। इस कला के वरिष्ठ शिल्पी पद्म अलंकरण से अलंकृत श्री निरंजन गोस्वामी से इस...

মহামায়াতন্ত্রম

Image
৬৪ তন্ত্র পরিগণন-এর মধ্যে প্রথমা মহামায়া তন্ত্র। তাই তাঁর মহত্বের বিষয় বোধ করা যায়। মহামায়া ' নামোল্লেখ বহু গ্রন্থকার দ্বারা উল্লেখিত। নিত্যাষোড়শীকার্ণব এর অনুরূপ ৬৪ প্রকারের তন্ত্র গ্রন্থ বিদ্যমান। সেই সব গ্রন্থের মধ্য প্রথম নাম মহামায়া তন্ত্রের। এটি পূর্ন তন্ত্র গ্রন্থ নয়। শ্রী বজ্রশেখর তন্ত্রের একটি ভাগ মাত্র। অত্যন্ত গুুত্বপূর্ণ হওয়ায় তাই প্রাচীন কাল থেকে পৃথক ভাবে চর্চিত। তন্ত্র তিন প্রকার - হেতু, ফল এবং উপায়। এই তন্ত্রে সংক্ষিপ্তকারে হেতু, ফল ও উপায়ের বর্ণনা পাওয়া যায়। এটি বজ্রডাকিনী নামক পরম গুহ্য তন্ত্র। সেই পরিণীত হয়ে মহামায়া, যার ফলে এর নাম মহামায়া। এখানে বুদ্ধ ডাকিনী, বজ্র ডাকিনী, রত্ন ডাকিনী, পদ্ম ডাকিনী এবং বিশ্ব ডাকিনী দেবী রূপে গণ্য। তারাই মূল তত্ত্ব। এঁদের দ্বারাই সমগ্র জগৎ ব্যাপ্ত। প্রথম নির্দেশ মংলাচরণ। 

शतवर्षी ऋषि

Image
30 सितंबर 1922 को जन्मे फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी का शताब्दी वर्ष आरंभ हो गया। ऋषिकेश मुखर्जी साहब भारतीय फिल्म निर्देशक, संपादक और लेखक थे। जिन्हें भारतीय सिनेमा के महानतम फिल्मकारों में से एक माना जाता है। जिन्हें उनके द्वारा निर्मित कई फिल्मों के लिए वर्षों याद किया जाता रहेगा। अनारी, सत्यकाम, चुपके चुपके, अनुपमा, आनंद, अभिमान, गुड्डी, गोल माल, मझली दीदी, चैताली, आशीर्वाद, बावर्ची, खूबसूरत, किसी से ना कहना, नमक हराम जैसी फिल्मों का असर भारतीय दर्शकों के जेहन में सदा के लिए अंकित हो गया है। ऋषिकेश मुखर्जी साहब के फिल्मी कैरियर की ओर नजर दें तो 40 के दशक में कलकत्ता के बी एन सरकार के न्यू थियेटर्स में बतौर कैमरामैन और फिर फिल्म एडिटर के रूप में काम करना शुरू किया, जहाँ उन्होंने सुबोध मितर से अपने हुनर ​​को सीखा, जो उस समय के जाने-माने संपादक थे। इसके बाद उन्होंने 1951 से फ़िल्म संपादक और सहायक निर्देशक के रूप में बिमल रॉय के साथ मुम्बई में काम करते हुए दो बीघा ज़मीन और देवदास जैसी फिल्मों में अपने हूनर का जलवा बिखेरा। इन फिल्मों में आनंद फिल्म की बात अलग से कर सकते हैं। इसक...

फिल्म 'दादा लख्मी' के बहाने

Image
फिल्म 'दादा लखमी' के बहाने   - जयदेव दास सूर्यकवि के रूप में विख्यात सांगी स्वर्गीय पं. लखमीचंद की बायोपिक 'दादा लखमी' को राष्ट्रीय पुरस्कार का सम्मान मिला है। यशपाल शर्मा ने हरियाणवी सिनेमा को मुख्यधारा सिनेमा में लाने के लिए जो प्रेरक कार्य किया है उसके लिए साधुवाद बनता है। फिल्म समीक्षक सुशील सैनी का मानना है कि ऐसी सफलता ही हरियाणवी सिनेमा की दिशा को तय करेगी, यह निश्चित है।  सैनी जी की चिंता जायज है। दरअसल, बीते कई दशकों से हरियाणवी फिल्में अपनी उत्कृष्टता के लिए पदक तो बटोर रही हैं, किन्तु स्थानीय दर्शकों का स्वाद बिगड़ा होने से सिनेमा हाल अक्सर खाली पड़े देखे गए हैं। कंटेंट और तकनीकी स्तर पर बेहद उत्कृष्ट रहीं लाडो, पगड़ी, सतरंगी और छोरियां छोरों से कम नहीं होती, जैसी कई हरियाणवी फिल्में नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीतने में सफल रहीं। ये फिल्में एलिट वर्ग में विशेष तौर पर सराही गई, किन्तु थिएटर पर दर्शकों की भीड़ खींचने में नाकामयाब रहीं। अगर हरियाणवी सिनेमा को जिंदा रखना है तो 'दादा लखमी' को सफल होना ही होगा। यह फिल्म थिएटर पर पैसा बटोरेगी, तो अन्य फिल्मो...

आज की फ़िल्म में आज का जीवन-मृणाल सेन

Image
 आज की फिल्म में आज का जीवन-मृणाल सेन मूल बंगला से हिंदी अनुवाद : जयदेव दास [रिज़र्व बैंक कर्मचारी संघ ने '74 के शुरुआती समय में एक  परिचर्चा आयोजित की। विषय: 'आज की फ़िल्म में आज का जीवन'। वक्ता: पशुपति चट्टोपाध्याय, बिमल भौमिक, धृतिमान चट्टोपाध्याय, शमिक बंद्योपाध्याय और मृणाल सेन। सबसे पहले वक्ताओं ने अपना वक्तव्य रखा। फिर दर्शकों के गरमागरम, उत्तेजक और धधकते सवालों का जवाब दिलचस्पी के साथ दिए। पशुपति चटर्जी, बिमल भौमिक और धृतिमान चटर्जी के बाद मृणाल सेन ने अपना पक्ष रखा। जो चित्रबिक्षण पत्रिका के मार्च-अप्रैल '84 और मई-जून '84 अंक में प्रकाशित हुआ था हममें से तीन ने परिचर्चा का एक घण्टा अपने वक्तयों को रखने में गुजार दिया, ऐसे में बाकी बचे हम दोनों अगर कुछ ना भी कहें तो चलेगा। प्रत्येक को सात मिनट कहना था। इसके अलावा, एक और समस्या है, मैंने यहां आकर जो कुछ भी कहने के लिए संजोया था, उनमें से दो-चार पॉइंट पशुपतिबाबू ने पहले ही कह दिया। उसके बाद दो और लोगों ने कहा, जिनमें बहुत सी चीजें कवर हो गईं। शमिक ने अभी तक कुछ नहीं कहा है, शमिक ने कहा होता तो कहने को कुछ रह ही...

रक्तांचल 2 में काशी के कलाकार

Image
 #Raktanchal2  'रक्तांचल' वेब सीरीज का यह दूसरा सीजन है। जिसे MX प्लेटफॉर्म पर आप देख रहे होंगे या देखेंगे। पहले सीजन में ही पूर्वांचल के लोगों को यह सीरीज बहुत पसंद आई थी। खासकर युवा दर्शकों ने खूब पसंद किया और करेंगे भी क्यों न। जो कलाकार उसमें अभिनय कर रहें हैं उनका अभिनय तो बेहतर है ही, साथ ही इस अंचल के चिरपरिचित चेहरे हैं। 'रक्तांचल' की कहानी 1984 से शुरू होती है जब गांव के सीधा-सादे और आईएएस बनने की इच्छा रखने वाले विजय सिंह (क्रांति प्रकाश झा) के पिता की हत्या गैंगस्टर वसीम खान (निकितन धीर) के गुंडे कर देते हैं। इसके बाद अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए विजय सिंह पढ़ाई-लिखाई छोड़कर क्राइम की दुनिया में उतर जाता है। वक्त के साथ विजय सिंह की ताकत में इतना इजाफा होता है कि वह सीधे वसीम खान के वर्चस्व को चैलेंज करने लगता है। इन दोनों के गैंगवार से पूर्वांचल में खून की नदियां बहने लगती हैं जिसकी कहानी है 'रक्तांचल'। रक्तांचल के पहले सीजन की तुलना में एक्शन कम दिखेगा। तब आप सोच रहे होंगे कि अब बचा क्या? अब बचा अभिनय। हां, अभिनय करते हुए आप कुछ बड़े कलाकार...