फिल्म 'दादा लख्मी' के बहाने
फिल्म 'दादा लखमी' के बहाने
- जयदेव दास
सूर्यकवि के रूप में विख्यात सांगी स्वर्गीय पं. लखमीचंद की बायोपिक 'दादा लखमी' को राष्ट्रीय पुरस्कार का सम्मान मिला है। यशपाल शर्मा ने हरियाणवी सिनेमा को मुख्यधारा सिनेमा में लाने के लिए जो प्रेरक कार्य किया है उसके लिए साधुवाद बनता है। फिल्म समीक्षक सुशील सैनी का मानना है कि ऐसी सफलता ही हरियाणवी सिनेमा की दिशा को तय करेगी, यह निश्चित है।
सैनी जी की चिंता जायज है। दरअसल, बीते कई दशकों से हरियाणवी फिल्में अपनी उत्कृष्टता के लिए पदक तो बटोर रही हैं, किन्तु स्थानीय दर्शकों का स्वाद बिगड़ा होने से सिनेमा हाल अक्सर खाली पड़े देखे गए हैं। कंटेंट और तकनीकी स्तर पर बेहद उत्कृष्ट रहीं लाडो, पगड़ी, सतरंगी और छोरियां छोरों से कम नहीं होती, जैसी कई हरियाणवी फिल्में नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीतने में सफल रहीं। ये फिल्में एलिट वर्ग में विशेष तौर पर सराही गई, किन्तु थिएटर पर दर्शकों की भीड़ खींचने में नाकामयाब रहीं।
अगर हरियाणवी सिनेमा को जिंदा रखना है तो 'दादा लखमी' को सफल होना ही होगा। यह फिल्म थिएटर पर पैसा बटोरेगी, तो अन्य फिल्मों के निर्माण की भी राह खुलेगी। फिल्मों के निर्माण से न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि प्रदेश सरकार भी निर्माताओं की सलाह मानने को बाध्य होगी, वरना हरियाणवी फिल्म पॉलिसी का सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह जाना लाजिमी है।
हरियाणा उत्तर भारत का एक राज्य है जिसकी राजधानी चण्डीगढ़ है। इसकी सीमायें उत्तर में पंजाब और हिमाचल प्रदेश, दक्षिण एवं पश्चिम में राजस्थान से जुड़ी हुई हैं। यमुना नदी इसके उत्तर प्रदेश राज्य के साथ पूर्वी सीमा को परिभाषित करती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हरियाणा से तीन ओर से घिरी हुई है और फलस्वरूप हरियाणा का दक्षिणी क्षेत्र नियोजित विकास के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। जहां हरियाणवी बोली जाती है।
हरियाणवी उत्तर भारत में बोली जाने वाली भाषाओं का एक समूह है। इसे भाषा नहीं कहा जा सकता। हरियाणवी में कई लहजे हैं, साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में बोलियों की भिन्नता है। हरियाणा के उत्तरी भाग में बोली जाने वाली हरियाणवी थोड़ा सरल होती है तथा हिन्दी भाषी व्यक्ति इसे थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं दक्षिण हरियाणा में बोली जाने वाली बोली को ठेठ हरियाणवी कहा जाता है।यमुनानगर, अंबाला, पंचकुला, कुरूक्षेत्र, करनाल आदि उत्तर प्रदेश के कुछ जिलो मे एक ही बोली प्रचलित है जो कौरवी हरियाणवी है मध्य और दक्षिण हरियाणा की बोली बांगरू है। कौरवी हरियाणवी बांगरू से ज्यादा शुद्धतम हिंदी का रूप है। हरियाणा के कुछ जिलो जैसे हिसार, सिरसा फतेहाबाद, भिवानी में लगभग राजस्थान की बोली बागड़ी या मारवाड़ी का भी इस्तेमाल किया जाता है। रोहतक, झझर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, इन जिलो में देसवाली हरियाणी का इस्तेमाल किया जाता है। हरियाणा या राजस्थान का रहन सहन आदि एक जैसा होने के कारण राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर, भादरा, कणाऊ(RJ 49) मैं भी हरियाणवी भाषा बोली जाती है।
अब हरियाणवी फिल्में के इतिहास पर यदि गौर करें तो पाएंगे हरियाणवी भाषा की सर्वप्रथम फिल्म के बारे में अधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं हो पाया है। कई चलचित्र विशेषज्ञों के अलग अलग मत हैं कोई प्रथम हरियाणवी फिल्म धरती बताता है तो कुछ के अनुसार हरफूल जाट झुलानी वाला तथा कुछ बीरा शेरा को हरियाणवी की प्रथम फिल्म बताते हैं। परन्तु हरियाणवी की पहली सबसे कमाई करने वाली सबसे बड़ी हिट फिल्म १९८४ में रिलीज़ हुई चन्द्रावल थी। इसके बाद हरियाणवी फिल्मों की बाढ सी आ गई। जाट, लाडो बसंती, गुलाबो, लम्बरदार, फागुन आयौ रे, जाट हरियाणे का, जाटणी जैसी कई फिल्में रिलीज़ हुईं। आज हरियाणवी सिनेमा एक नए दौर में है।
थिएटर पर आने से पहले ही 'दादा लखमी' की झोली में भी अवॉर्ड की बरसात होने लगी। इसे फिल्म की सफलता के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है। 24 मार्च, 2021 को जोधपुर में आयोजित राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (रिफ) में 'दादा लखमी' को 'बेस्ट म्यूजिकल फिल्म' के सम्मान से नवाजा गया। वहीं, 4 अप्रैल, 2021 को दिल्ली के हंसराज कालेज में संपन्न हुए काशी इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड (किफा) में इस फिल्म ने चार अवॉर्ड हासिल किए हैं। इनमें बेस्ट बायोपिक फिल्म (निर्माता-रविंद्र राजावत और यशपाल शर्मा), बेस्ट डायरेक्टर डेब्यू फिल्म (यशपाल शर्मा), बेस्ट एक्टर (हितेश शर्मा) और बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर (राजेंद्र गुप्ता) के नाम से अवॉर्ड मिले हैं।
हरियाणवी सिनेमा के जाने-माने अभिनेता-लेखक राजू मान ने 'दादा लखमी' की कथा को बड़ी शालीनता से लिखा है। राजू मान और यशपाल शर्मा का स्क्रीनप्ले पूरी कसावट लिए हुए है। वहीं, इनके लिखे डायलॉग भी काफी दमदार बने हैं। संवाद कई जगह आंखें नम कर देते हैं तो कहीं-कहीं दर्शकों को तालियां बजाने के लिए भी विवश कर डालते हैं।
म्यूजिकल फिल्म है तो नि:संदेह संगीत बेहतर मिलना लाजिमी ही था और इस काम को बॉलीवुड के विख्यात संगीतकार उत्तम सिंह ने बेहतर तरीके से अंजाम दिया है। फिल्म के बैकग्राउंड में आजाद सिंह चाहर का लिखा गीत 'चालो उस देश में जहां संगीत हो...' दिल के तार झंझोड़ डालता है। दो भक्ति गीत ओपी हरियाणवी तथा राजू मान ने लिखे हैं। अन्य गीत पं. लखमीचंद के ही रचे हुए हैं, जिन्हें प्रेम सिंह देहाती, मीनाक्षी पांचाल, सोमवीर कथूरवाल, मासूम शर्मा, सुभाष फौजी, श्याम शर्मा और इंदरसिंह लांबा, रघुवीर यादव,एहसान अली,जावेद अली ने अपनी मधुर आवाज में पिरोया है।
सुप्रतिम भोल, विकास शर्मा और विकास कौशिक की सिनेमैटोग्राफी आंखों को सुकून प्रदान करती है। लोकेशन बताती हैं कि हरियाणा में फिल्म शूटिंग के लिए पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं। इसके लिए कहीं अन्यत्र भटकने की जरूरत नहीं। जयंत देशमुख व गिरिजा शंकर का आर्ट डायरेक्शन तथा असीम सिन्हा का संपादन उम्दा दर्जे का है। माला डे ने भी कॉस्टयूम का पूरे सलीके से ख्याल रखा है।
https://youtu.be/cyKdPanvOUs
फिल्म का यह पार्ट वन है और इसका पार्ट टू निर्माणाधीन है। उसमें आप लखमीचंद के परिपक्व पात्र को देख पाएंगे, ऐसा फिल्मकार की ओर से दावा किया गया है।
Comments
Post a Comment