मनुष्य सबसे क्रूर जानवर है-नीत्शे

 

Trailer

 "दंश" का ग्लोबल प्रीमियर "मैवशैक" पर हुआ है! स्वीडन स्थित अंतर्राष्ट्रीय OTT (Over the Top)  Mavshack ने बनारस में बनी फिल्म "दंश" का ग्लोबल प्रीमियर किया है। बालमुकुंद त्रिपाठी द्वारा लिखित व निर्देशित फ़िल्म दंश अबतक आठ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी है। आपको बताते चले फिल्म त्रिपाठी के द्वारा ही रचित नाटक "डार्क सिटी" पर आधारित है, जिसका वह दर्जनों बार मंचन कर चुके हैं। जहांतक मंच की बात यदि करें तो इस नाटक की पृष्ठभूमि से क्रूरता के रंगमंचीय सिद्धान्त के तत्व की महक आती है और नाम मे ही अंधेरे की व्याप्ति। अंधेरे के क्रूरतम परिवेश में दम घुटते लोगों की कथा विस्तार को बिम्ब देने का प्रयास दिखता है। इस फिल्म में चार अलग-अलग कहानियाँ हैं - हॉरर किलिंग, आज की राजनीति, हिन्दू-मुस्लिम, बेरोजगारी।  जिनके माध्यम से समाज में फैली विसंगतियों को प्रस्तुत किया गया है।

नीत्शे की क्रूरता की परिभाषा को परिमार्जित करते हुए आर्तो की अपनी परिभाषा यह घोषणा करती है कि सभी कलाएं अनुभव के रोमांच को फिर से बनाने के लिए जीवन की अंतर्निहित क्रूरताओं को मूर्त रूप देती हैं और तेज करती हैं ... हालांकि उन्होंने औपचारिक रूप से नीत्शे का हवाला नहीं दिया, फिर भी उनके लेखन में एक परिचित प्रेरक अधिकार है, एक समान विपुल वाक्यांशविज्ञान, और चरमपंथ में रूपांकनों ... आर्तो ने दर्शकों को जीवन के खतरों से सीधे संपर्क में लाते हुए, सौंदर्य दूरी को दूर करने की मांग की। थिएटर को ऐसी जगह में बदलकर जहां दर्शक संरक्षित होने के बजाय उजागर हो, वह उन पर क्रूरता का कार्य कर रहा था। क्रूरता से दृश्यों को न दिखा कर बल्कि उस भाव को उन तक पहुंचने की पुरजोर कोशिश करता - ली जैमीसन , एंटोनिन आर्टौड: थ्योरी टू प्रैक्टिस , ग्रीनविच एक्सचेंज, 2007

बालमुकुंद त्रिपाठी के नाटक डार्क सिटी या अंधेरे के शहर में आर्तो द्वारा प्रतिपादित क्रूरता के सिद्धांत की झलक मिलती है। हालांकि उन्हीनें कभी इस बात का जिक्र नहीं किया। शायद शहर ने भी उनसे ऐसे विषयों पर विचार विमर्श का आमंत्रण कभी दिया ही नह। वैसे भी शौकिया रंगमंच हिंदी जगत में अब भी उतना गंभीर नहीं हो पाया है। भले ही दावे बहुत से उठते रहते हैं।

नाटक से विरत होकर अब कुछ फ़िल्म की बातें। फ़िल्म बनते हैं सीक्वेंस से, सीक्वेंस के आधार है दृश्य, दृश्य की इकाई शॉट होते हैं। दो शॉट को परस्पर सजाने से जब दोनों (शॉट के अर्थ) से पृथक जब कोई तीसरा ही अर्थ निकल आये तो उसे 'मोन्टाज़' कहते हैं। फ़िल्म प्रोडक्शन के तीन हिस्सों में सम्पादन एक अहम हिस्सा है। कुछ तो यहां तक कहते हैं कि साहब फ़िल्म तो एडिटिंग टेबल पर ही बनती है। 'दंश' फिल्म को के. आसिफ चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में "बेस्ट एडिटिंग" का अवार्ड भी मिल चुका है। इसका संपादन सत्यजीत विश्वकर्मा, आकाश जायसवाल एवं अभिषेक ब्रह्मचारी ने मिलकर किया है। फ़िल्म के सम्पादन में Kill Bill 2003 ख्यातिप्राप्त विदेशी फिल्मकार Quentin Tarantino की छाया है।

बनारस के कलाकार एक समय हिंदी फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाओं को निभाकर अभिनय के झंडे गाढ़ा करते थे। उन नामों में श्रद्धेय कन्हैया लाल (मदर इंडिया, हम पांच), विदुषी लीला मिश्रा ( शोले की बुआ ), सुजीत कुमार आदि बड़े नाम है। आज समय बदला है, बनारस के कलाकारों में अब भी दमखम है, मौका मिलने की देर है। ऐसे में स्थानीय निर्देशकों को उन पर भरोसा करना होगा। फ़िल्म में रविकांत मिश्रा, ज्ञानेंद्र, स्मृति मिश्रा, राहुल राजपूत, तौक़ीर खान, हर्ष गुप्ता, विकास श्रीवास्तव, अजय दूबे, मंजरी पाण्डेय और बालमुकुंद त्रिपाठी के द्वारा अभिनय के अलावा फिल्म के सह-कलाकारों में रियाज़ साबरी, प्रकृति पांडेय, अगस्त कुमार, नीरज सिंह, राजकुमार सिंह, अमित मिश्रा, सैयद इनाम "रानू", वसीम खान, अभिषेक पांडेय, विकास मिश्रा, राजेश राजपूत, आनंद कन्नौजिया, विकल श्रीवास्तव, चंदन शर्मा, शशांक द्विवेदी, मोहम्मद अकील, अमित श्रीवास्तव, ज्ञानेंद्र चौबे, रूद्र सिंह, वर्तिका गुप्ता, निखिल उपाध्याय, संदीप गौण, हंसराज "हंसू", अनमोल त्रिपाठी, प्रियांशी, अमित, राहुल, विक्रांत और मुज़फ्फर हैं।

बॉलीवुड डॉट कॉम, मीता आर्ट्स और ब्रह्मयशो प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी दंश के क्रिएटिव डायरेक्टर अभिषेक ब्रह्मचारी ने फिल्म के रिलीज़ पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा कि इससे हम बनारस के स्थानीय लोगों द्वारा की जा रही फिल्ममेकिंग को बढ़ावा मिलेगा। दंश की पटकथा लेखक रश्मि मिश्रा, छायाकार अनिल सिंह एवं आकाश जायसवाल, कला निर्देशक मार्तण्ड रविंद्र मिश्रा, अमित कुशवाहा एवं अभिषेक गुप्ता, गीतकार रोहित सेठ, संगीत निर्देशक साजु-सुधांशु, पार्श्व संगीत निर्देशक सिद्धार्थ शंकर एवं माधुरज्य सइकिया, री-रिकॉर्डिंग मिक्सर ऋत्विक राज पाठक, को-ऑर्डिनेटर अभिजीत साहा और असोशिएट डायरेक्टर साजिद खान हैं। इसका निर्माण बालमुकुंद त्रिपाठी, निहारिका अजय एवं अनुपम विकास के द्वारा किया गया है। इसके असोशिएट प्रोड्यूसर प्रसून साही, कार्यकारी निर्माता रजत रंजन एवं उषा त्रिपाठी, सह-निर्माता अगस्त कुमार एवं वैभव मिश्रा और लाइन प्रोड्यूसर अजय पाठक एवं कल्पना त्रिपाठी हैं। इसमें मार-धाड़ राजेश चौरसिया, नृत्य मुन्ना पटेल एवं आशुतोष यादव, शृंगार क़ुतुब कमल, मनोज मलिक एवं नंदिनी ठुकराल, परिधान रीता प्रकाश एवं संगीता चौबे, केश सज्जा चन्दन शर्मा, संजू शर्मा एवं दीपशिखा चौबे और पोस्टर डिजाईन अदम्य श्याम का है। विशेष आभार मेंं अनिल तिवारी।

फिल्म को एक बार अवश्य देखें, और साथ ही इस कठिन समय में ऐसे सकारात्मक प्रयासों से ही हम सभी आगे बढ़ पाएंगे।

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