हिंदी रंगमंच दिवस और यथार्थ

आज चैत्र शुक्ल ११ संवत २०७७ है
अतः हिंदी पंचांग के अनुसार
हिंदी का पहला मंचित नाटक शीतला प्रसाद कृत नाटक 'जानकी मंगल' की प्रस्तुति १५२ वर्ष पहले बाबू ऐश्वर्य नारायण सिंह के प्रयत्न से 'बनारस थिएटर' में बड़ी धूम धाम से खेला गया। वहीं पहला हिंदी नाटक 'नहुष' (जो भारतेंदु जी के पिता जी ने लिखी है) को मानते हैं।

बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र ने प्रेक्षालय का नाम तो दिया पर वह बनारस के किस स्थान पर स्थित था उल्लेख नहीं किया। जिस समय वह ये लेख लिख रहे होंगे तब 'बनारस थिएटर' इतना जाना पहचाना नाम था कि उसके नाम का उल्लेख होते ही लोग उसका अनुमान उसी प्रकार से लगा लेते होंगे, जिस प्रकार आज बनारस के हर रँगप्रेमी 'श्री नागरी नाटक मण्डली' कहते ही कबीर चौराहा के पिपलानी कटरा के समीप के स्थान विशेष को ही जानता है। पर मजे की बात यह है कि यह नाम एक रंग मण्डली का है जिसकी स्थापना 1909 ईसवी में हुई। पर वहां स्थित प्रक्षागृह का असली नाम 'मुरारीलाल मेहता प्रक्षागृह (1960) है, जो उतना प्रचलित नहीं।

अब कुछ लोग यह दावा करते हैं कि बनारस के केंटोनमेंट क्षेत्र में एक प्रेक्षागृह हुआ करता था। जो अब बंगला न. 25 है। उसे नाच घर भी कहते हैं। वहीं जानकी मंगल खेला गया। (जबकि बाबू हरिश्चंद्र ने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा)।

आज का कैंटोनमें क्षेत्र पराधीन भारत में अंग्रेजों के अधीन था। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए किसी हॉल का निर्माण किया ही होगा। पर वहां किसी भारतीय का प्रवेश वर्जित ही होता था। ऐसे में वहां पूरा का पूरा नाटक वो कैसे करने देंगे? यदि ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें निमन्त्रित किया होता तो उसका उल्लेख भारतेंदु अवश्य करते। यहीं पर ठहर कर सोचने की बात है। अतः उक्त हॉल शहर के बीच ही कहीं रहा होगा जिसे ढूंढने की आवश्यकता है। यह मिल गई तो सांस्कृतिक विरासत होगी।

हमारा अंदेशा बनारस थिएटर गोदौलिया से टाउन हॉल के बीच ही कहीं रहा होगा। क्योंकि यह अंचल तत्कालीन समय मे सक्रिय था। आदि आप देखें तो सिनेमा हॉल यहीं पर एक के बाद थे शहर के और क्षेत्रों की तुलना में। रंगकर्म से जुड़े तत्कालीन लोग भी। तीन बड़े नामों में भारतेंदु हरिश्चंद्र (चौखम्बा, चौक ), जयशंकर प्रसाद (बेनिया बाग) और आग़ा हश्र कश्मीरी ( दालमंडी, चौक)। एक और तथ्य हमें नाट्यकार महाकवि पण्डित अम्बिका दत्त व्यास (1858) की पांडुलिपि से प्राप्त होता है कि 1740 ई में कश्मीर के कुछ शैव साधक और रंगकर्मी काशी ( बनारस ) आये थे और उन्होंने नाट्य शास्त्र में वर्णित प्रथम भारतीय नाटक 'समुद्र मंथन' का मंचन किया था। 19 अगस्त 1740 में उसका नगर के बीच सत्यनारायण मन्दिर, बांसफाटक (ज्ञानवापी) के पीछे स्थित आदि विश्वेश्वर मन्दिर के प्रांगण में हुआ था। अतः यहीं कहीं बनारस थिएटर के भी होने का अनुमान लगाया जा सकता है।

वैसे तो रंगमंच दिवस रोज ही है। लेकिन यदि कोई तिथि तय की जा रही है तो उसके हर पक्ष पर बात होनी चाहिए।

आज तक हमें ये नही पता चल पाया कि 3 अप्रैल को हिंदी रंगमंच दिवस मनाने के चलन का आरम्भ किसने और कब किया। कोई सभा या गोष्ठि हुई थी? जैसे विश्व रंगमंच दिवस की तिथि तय 1961 में हुई महासभा में की गई थी। पर हिंदी रंगमंच दिवस के लिए ऐसा कब हुआ।

जो हुआ अच्छा हुआ। पर हिंदी के लिए अंग्रेजी के शरणापन्न होने से तो भारतेंदु जी को ही दुख देना होगा। जो हिंदी में ही हर काम सम्पन्न करने का सपना संजोते रहें आजीवन और गाते रहे-

निज भाषा उन्नति अहे
सब उन्नति को मूल

सन्दर्भ
1. भारतेंदु संमग्र, स. हैेमन्त शर्मा, हिंदी प्रचारक पब्लिकेशन प्रा. ल., वाराणसी
2. अभिनयशास्त्र, गौतम चट्टोपाध्याय, अभिनवगुप्त अकादमी, वाराणसी

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