आंगिकाभिनय
आंगिकाभिनय
सर्वे हस्तप्रचाराश्च प्रयोगेषु यथाविधि।
नेत्रभ्रूमुखरागाद्य: कर्त्तव्य व्यञ्जिता बुधै: ।। ना. शा. ९/१६४
हस्त प्रचारों को प्रयोग के समय शास्त्र निदर्शित विधि के साथ नेत्र, भौंहे, मुखराग आदि द्वारा विद्वत व्यक्त करें।
यत्र व्यग्रा वु भौ हस्तो तत्तद दृष्टि विलोकनै: ।
वाचिकाभिनयं कुर्याद विरामेरर्थ दर्शकै: ।। ना. शा. ९/१७४
वाचिक अभिनय के समय विभिन्न दृष्टियों तथा अवलोकन क्रियाओं को हस्त क्रियाओं के अनुसार इस प्रकार दक्षता पूर्वक निदर्शित करना चाहिये जिससे कि उनके द्वारा प्रदर्शित वाचिक अभिनय विराम होने पर भी अर्थों की (पूर्ण) अभिव्यक्ति हो।
पाद योर नुगौ चापि हस्तौ कार्यो प्रयोकतृभि:। ना.शा. १३/४४
यतो हस्त स्ततो दृष्टिर्य तो दृष्टि स्ततो मनः।
यतो मन स्ततो भावो यतो भाव स्ततो रसः।। अ. द. ३७
पैरों की गति का हाथों द्वारा अनुशरण होना चाहिए। जिधर हाथ हो दृष्टि उसका अनुशरण करे। दृष्टि पर मन हो। जहाँ मन हो वहीं भाव और जहाँ भाव वहीं रस।
नाट्यशास्त्र || अभिनयदर्पण
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