चुनिबाला देवी : पॉथेर पांचाली की इंदिर ठाकुरुन
बकौल सत्यजीत रे - जिसप्रकार महानायक उत्तम कुमार के उपलब्ध न होने पर "नायक" फ़िल्म को बनाते ही नहीं उसीप्रकार चुनिबाला देवी के न मिलने पर "पॉथेर पाचाली ( राह का गीत )" बनाना सम्भव ही नहीं हो पाता। सत्यजीत रे साहब की एक खोज ही कही जाएगी अभिनेत्री चुनिबाला देवी।
रे साहब की "पॉथेर पांचाली" फ़िल्म का चरित्र विशेष इंदिर ठाकुरुन भूमिका को निभाने वाली अभिनेत्री "चुनिबाला देवी" एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहली भारतीय अभिनेत्री हैं। जिसकी खबर सम्भवतः हममें से गिने चुने लोगों को ही ज्ञात होगी!
विदुषी चुनिबाला देवी की उन अनजान बातों पर चर्चा करना बहुुुत जरूरी है।
बात उस समय की है जब सत्यजीत रे साहब ने "पॉथेर पांचाली" फ़िल्म के लिए हरिहर, सर्बजया, अपु, दुर्गा आदि तमाम चरित्रों के लिए अभिनेता / अभिनेत्रियों के निर्धारण कर चुके थे लेकिन इंदिर ठाकुरुन चरित्र के लिए जिस प्रकार की अभिनेत्री की आवश्यकता है, वो मिल ही नहीं रही। चरित्रानुरूप कद काठी की एक वृद्धा अभिनेत्री के न मिल पाने पर इस फ़िल्म का निर्माण सम्भव ही नहीं। करे तो करे क्या!
उस किरदार के लिए बहुत सारी अभिनेत्रियों का ऑडिशन लिया गया। पर कोई भी उस चरित्र के अनुकूल नहीं मिला। एक अभिनेत्री ने सत्यजीत रे की मांग को समझते हुए उन्हें एक अभिनेत्री के होने की जानकारी दी कि जिनकी बात मैं कर रही हूँ वो पहले थिएटर में काम करती थीं, फिल्मों का भी तजुर्बा है। 1930 में आई फ़िल्म 'बिगहा' के साथ अपनी फिल्मी सफर आरम्भ की। सुना है रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा निर्देशित फिल्म 'नोतिर पूजा' में भी थी। हालांकि उन्होंने, 1939 में बनी 'रिक्ता' के बाद उन्हीने फ़िल्म में काम करना बंद कर दिया।
सत्यजीत रे द्वारा उनका पता पूछने पर उन्होंने कुछ सकुचाते हुए कहा कि वो जहां रहती हैं, क्या आप जा पाएंगे? क्योंकि उनका घर जहां पर है, वो एक रेड लाइट एरिया है।
अंततः एक आशा की किरण जगती देख रे साहब ने उनसे पता लिया। कोलकाता के पाइकपाड़ा नामक स्थान में रह रही वृद्धा जिसकी उम्र अस्सी है। बिना देर किए अगली सुबह सत्यजीत रे पहुंच गए पाइकपाड़ा बस्ती के उस मकान में जहां वृद्धा रहती थी। सत्यजीत रे मोड़े पर ऐन जिनके सामने बैठ थे वो थी चुनिबाला देवी।
सत्यजीत रे ने इस बात का कई जगह उल्लेख भी किया है-तब चुनिबाला देवी की उम्र अस्सी के पास रही होगी। गाल धसा हुआ, चेहरे पर झुर्रियां, चमड़ी ने मास से दूरी बना ली थी। एकदम वैसी ही, जैसा रे साहब ने इस चरित्र विशेष के लिए सोच रखा था। बातों ही बातों में रे साहब ने उनसे पूछा -क्या आप ने पॉथेर पांचाली पढ़ी हैं?
वयोवृद्ध चुनिबाला देवी थोड़ी ही सही पर पढ़ी लिखी थी। कुछ किताबों का अध्यन भी किया था।
चुनिबाला देवी ने कहा, हाँ पढा है।
- फ़िल्म में इंदिर ठाकुरुन का किरदार निभा पाएंगी?
चुनिबाला देवी ने हंसते हुए कहा, "आपलोग यदि सीखा-पढ़ा दे तो कर लुंगी!"
रे साहब ने कहा, "एक कविता या छंद बोलिये? जरा सुन भी लें।"
चुनिबाला देवी ने नन्हे बच्चो को सुनाने वाली कविता जो उन्हें उसी समय याद आई "घूम पाड़ानी मासीपिसी....." पूरी कविता तत्काल अच्छे से सुना दी।
सत्यजीत रे साहब ने एक जगह कहा था - इस कविता को मैं चार लाइन से अधिक बोल ही नहीं पाता था। पर उन्होंने पूरी कविता को सुनाया। इस उम्र में भी उनके स्मृति शक्ति की प्रखरता देख सत्यजीत रे आश्चर्य चकित हो गए!
रे साहब को समझते देर न लगी कि उनकी इंदिर ठाकुरुन की खोज पूरी हो गई। पर एक संसय अब भी बना हुआ था कि शूटिंग के लिए कोलकाता से 'बडाल' गाँव तक का नित्य सफर इस उम्र में सह पाएंगी या नहीं पूछने पर चुनिबाला देवी ने कहा, "हाँ क्यों नहीं। आपलोग इतने मेहनत से फ़िल्म निर्माण कर रहे हैं, उतनी तकलीफ तो मैं सह ही लुंगी।"
उनसे पूछने पर कि प्रतिदिन का पारिश्रमिक क्या लेंगी? उन्होंने कहा "एक दिन का दस रुपये देने भर से ही चल जाएगा।"
रे साहब ने कहा "आपको रोज का बीस रुपया दिया जाएगा।"
शूटिंग के काम आरम्भ हुआ। रोजाना तड़के ही टैक्सी से चुनिबाला देवी को शूटिंग स्थल तक ले जाया जाता। फिर शाम को उन्हें टैक्सी से घर छोड़ा जाता।
रे साहब ने एकदिन चुनिबाला देवी से पूछा, "क्या आप कोई धर्म मूलक या भक्ति गीत गा सकती हैं?"
चुनिबाला देवी ने जवाब में कहा, "हां।"
पॉथेर पांचाली में चुनिबाला देवी एक दृश्य के अंतर्गत चाँदनी रात में बैठ ताली बजाती हुई गाती हैं "होरी दिन तो गेलो তো सोन्धा होलो, पार कोरो आमारे ..... ( हे हरि दिन बीता, सांझ हुई, अब मुझे पार लगाओ"
इसी गीत को चुनिबाला देवी ने सत्यजीत रे को सुनाया था। बीना साज के ही चुनिबाला देवी द्वारा गाये गए गीत को सुनकर सत्यजी रे मोहित हो गए! उसी गीत को रेकॉर्डिंग किया गया। फ़िल्म में भी उसी तरह से चुनिबाला देवी ने बीना साज के ही गीत को गाया। एक मनोरम दृश्य का निर्माण करता हुआ यह गीत, पॉथेर पांचाली फ़िल्म को एक दूसरी ही जगत में ले गई।
पॉथेर पांचाली फ़िल्म का आरम्भ वर्ष 1952 के शरदऋतु में काश फूलों के बीच से गुजरते रेलगाड़ी वाले दृश्य से हुआ था और अंत करने में लगे थे तीन साल।
26 अगस्त 1955 को पॉथेर पांचाली को रिलीज किया गया। न्यू यॉर्क शहर में पहला प्रदर्शन किया गया।
सत्यजीत रे साहब को समझते देर न लगी कि इस फ़िल्म के रिलीज को चुनिबाला देवी नहीं देख पाएंगी। इसीलिए एकदिन प्रोजेक्टर मशीनों को साथ लेकर सत्यजीत रे उनके घर में ही इस फ़िल्म को दिखाने की व्यवस्था की। पूरी फिल्म चुनिबाला को उनके घर पर ही दिखाकर लौटे।
चुनिबाला देवी ने पॉथेर पांचाली फ़िल्म को अपने घर में बैठकर देख गई, मुक्त होने से पहले ही फ़िल्म को उनके लिये देख पाना महान फिल्मकार सत्यजीत रे साहब के उद्योग से ही सम्भव हो पाया था।
फ़िल्म के रिलीज होने को चुनिबाला देवी न देख जा सकी। उससे बहुत पहले ही वो इस जहां को छोड़कर चली गई!
अब आता है वो असली पल!
मैनीला फ़िल्म फेस्टिवल में अंतर्राष्ट्रीय सम्मान के पुरस्कार से सम्मानित अभिनेत्री के नाम की घोषणा होती है।
नाम पुकारा जाता है 'चुनिबाला देवी' का, भारतीय अभिनेता या अभिनेत्रियों में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मनित होती है एक अभिनेत्री के रूप में! एक विरल सम्मान की अधिकारिणी बनती हैं।
पर इस पुरस्कार को वो खुद लेने मैनिला न जा सकी। कारण इससे पहले ही इन्फ्लूएंजा से उनकी मृत्यु हो गई।
अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मनित अभिनेत्री चुनिबाला देवी यदि आज जीवित होती तो उनकी उम्र 150 वर्ष पार कर जाती।
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