"सुनील दत्त" भारतीय सिनेमा में एक विशिष्ठ स्थान रखने वाले कलाकार



"सुनील दत्त"
भारतीय सिनेमा में एक विशिष्ठ स्थान रखने वाले कलाकार सुनील दत्त साहब का आज जन्मदिन है। उनको याद करते हुए .....

1955 में भारत मे प्रदर्शित सैगल प्रोडक्शन के बैनर तले बनने वाली फिल्म थी रेल्वे प्लैटफॉर्म। यूं तो फ़िल्म की चिरपुरातन कथा अमीरी-गरीबी थी। फिर भी कई मायनो में उस समय के मद्दे नजर आधुनिक कही जा सकती है।त्रिकोणी प्रेम कथा में एक राजकुमारी का दिल एक गरीब आदमी पर आ जाता है। कथा रमेशसैगल की लिखी हुई है। सैगल साहब ने निर्देशन भी किया।

फ़िल्म के आरम्भ में ही जहां टाइटल और क्रेडिट के संग रेल की पटरी के गुजरते जाने से होता है। इस प्रकार का यह सम्भवतः भारत का पहला दृश्य है। रेलवे ट्रैक के ऊपर चलता ट्रेन सभी चीजों को पीछे छोड़ती हुई बढ़ रही है। कैमरे को ट्रेन के एकदम आखिर में टिका कर फिल्मांकन किया गया है। कैमेरा निर्देशन द्रोणाचार्य जी का था। जो पहलीबार में ही दर्शकों में कौतूहल और आश्चर्य का संचार करता है।

उक्त दृश्य का प्रभाव भारतीय सिनेमा पर इतना रहा कि उसके बाद बहुत से फिल्मकारों ने उसे दोहराया। यहां तक कि भारतीय सिनेमा के महान निर्देशकों में से एक मृणाल सेन के भुवनसोम (भुवन सोम 1969 को भारतीय सिनेमा में सार्थक फिल्मों के युग के आरम्भ का श्रेय प्राप्त है) का आरम्भ रेलवे ट्रैक पर से गुजरने से होती है। फर्क ये रहा कि इस बार कैमेरा पीछे की बजाए आगे रखा गया। बढ़ते हुए दौड़ते हुए जैसे किसी चीज को हासिल करने की होड़ मची हो।

'रेल्वे प्लेटफॉर्म" के आरंभिक दृश्य के साथ चलने वाले ध्वनि में एक गीत का प्रयोग किया गया है। गीत के बोल है- बस्ती बस्ती पर्वत पर्वत गाता जाए बंजारा... भारतीय सिने संगीत में यह गीत किसी मिल के पत्थर से कम नहीं। गीत के बोल साहिर लुधियानवी के हैं और तर्ज या धुन बनाया है एक और महान संगीतकार मदन मोहन ने और पार्श्वगायन किया है मोहम्मद रफी साहब ने।

गीत की सूची
देख तेरे इन्सान की हालत क्या है भगवान
गायक कलाकार : मोहम्मद रफ़ी , मनमोहन कृष्ण , शिव दयाल बतीश

बस्ती बस्ती पार्वत पर्व गत जय बंजारा
कलाकार: मोहम्मद रफ़ी

बस्ती बस्ती परबत परबत (भाग- II)
गायक कलाकार : मनमोहन कृष्ण

सोन चंडी मी टुल्ता हो जा दिलो का प्यार
कलाकार: मोहम्मद रफ़ी

मस्त शाम है हाथो मेरे नाम है
कलाकार: आशा भोसले, शिव दयाल बतीश

भजो राम भजो राम, मोरी बाह पाके लो राम
कलाकार: आशा भोसले, शिव दयाल बतीश

सखी रे तोरी डोलिया उठाएंगे कहार
कलाकार: लता मंगेशकर

चांद मद्धम है, आशमा चुप है
कलाकार: लता मंगेशकर

जिया खो गया ओ तेरा हो गया
कलाकार: लता मंगेशकर

अंधेर नगरी चौपट राजा
कलाकार: मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, मनमोहन कृष्ण, शिव दयाल बतीश

भारतीय सिने संगीत में पार्श्वगायन का चलन 1936 के आस पास से हमें मिलता है। उससे पहले सिने अभिनेता को खुद के गीत उन्हें ही गाने होते थे। इसलिए उन्हें अभिनेता के साथ साथ गायक होना आवश्यक होता था। पार्श्वगायन विषय को "पड़ोसन" फ़िल्म के एक बेजोड़ दृश्य में देखा जा सकता है।

फ़िल्म पर्दे पर गुजरते रेलवे ट्रैक के साथ साथ फ़िल्म के क्रेडिट में सैगल प्रोडक्शन के बाद उसमें काम कर रहे कलाकारों के सूची आनी शुरू होती है। पहले उस समय के प्रमुख नायिका नलिनी जैवंत का दिखता है। फिर एक साथ तीन नाम शीला मानी, जॉनी वॉकर और फिर जिस नवोदित कलाकार का नाम उभरकर आता है वह है सुनील दत्त साहब का।

इस फ़िल्म में
नलिनी जयवंत - नैना
शीला रमानी - राजकुमारी इंदिरा
जॉनी वाकर नसीब चंद के रूप में
सुनील दत्त - राम
राज मेहरा को राजा साहब के रूप में
राम की मां के रूप में लीला मिश्रा
मनमोहन कृष्ण को कवि के रूप में
स्टेशन मास्टर के रूप में नाना पलसीकर
बैग स्नैचर के रूप में जगदीप
टुन टुन को हास्य के लिए
पुजारी के रूप में राम अवतार
जैसी भूमिकाओं में दिखे।

रेल्वे प्लेटफॉर्म उनकी पहली फ़िल्म है। सुनील दत्त फिल्मों में आने से पहले रेडियो सीलोन में कार्यरत थे। उनके मूल रूप से पहचान दिलाई महबूब खान निर्देशित भारतीय सिनेमा इतिहास की एक और प्रमुख फ़िल्म "मदर इंडिया" (1957) ने।

भारतीय फिल्मों में नाम का आना कलाकार के वरिष्ठता का परिचायक रहा है। एक बार सुनील साहब का नाम के बाद वरिष्ठ कलाकार का नाम आने पर सनिल दत्त साहब ने प्रतिवाद किया था। इस घटना की व्यख्या पवन मेहरा जी अपने ब्लॉग [ब्लॉग सुहानी यादें बीते सुनहरे दौर की] में बहुत ही शिद्दत से करते हैं।

 Pawan Mehra के अनुसार -'सुनील दत्त' का नाम फिल्म इंडस्ट्रीज़ में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है वो जितने अच्छे अभिनेता थे उतने ही बेहतर इंसान भी थे.... वो विरले ऐसे अभिनेता है जो राजनीति के कीचड़ में रहते हुए भी हमेशा कमल की तरह खिले रहे उन पर कभी कोई दाग नहीं लगा.... अपने से बड़े कलाकारों को सुनील दत्त कैसे सम्मान के साथ लिया जाता है वो जितने अच्छे अभिनेता थे उतने ही बेहतर इंसान भी थे.... वो विरले ऐसे अभिनेता है जो राजनीति के कीचड़ में रहते हुए भी हमेशा कमल की तरह खिले रहे उन पर कभी कोई दाग नहीं लगा.... अपने से बड़े कलाकारों को सुनील दत्त कैसे सम्मान देते थे इस बात का पता फिल्म 'ज्वाला' की इस घटना से लगता है कैसे सुनील दत्त ने इस फिल्म 'ज्वाला' की नयिका मधुबाला के मरने के बाद भी उचित सम्मान दिया। ऐसे सिर्फ सुनील दत्त साहेब ही कर सकते थे ..

 ये तो सभी जानते हैं कि सुनील दत्त का आचरण कितना सौम्य और स्निग्धता पूर्ण था। पर वो गलत को गलत और सही को सही ठहराने में कभी कोताही नहीं बरतते। इसीलिए राजनीति में जाने पर भी उनकी छवि सुभ्र ही रह सकी।

एक श्रद्धांजलि

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