सारकारिना और अमर घोष

सारी तयारी  हो चुकी है......जीवन  की प्रमुख बातो का लेखा-जोखा तैयार किया  जा चूका है ........हर कोई ( संसद से समाचार माध्यम तक ) उन्हें सरे राह परोसने को ......बेचने को तैयार  ....
बस इन्तजार है  .........उनके मौत की ....ज्यो ही वो अपनी आँखे मुन्देंगे । सभी अपनी-अपनी रोटियां सकने में लग जायेंगे । साथ ही बाज़ार में जितनी जल्दी  हो सके बेचकर  दूसरी अंगीठी  के इंतजाम में जुट जायेंगे । यह  काम  हर एक के साथ दोहराया जा  रहे है ; हर उनके साथ  जिसने भारतीय शिल्प-कला-नाट्य  को नयी वांग्मय देने में अपनी सारी जिजीविषा लगा दी । वर्तमान में रंग-पुरोधा अमर घोष को रंग समाज की कृतघ्नता का शिकार होना पर रहा है।
अमर घोष भारतीय रंग मंच के ऐसे रंगकर्मी है; जिन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया । अपना सब कुछ । पेशेवर रंग मंच की चाह ने उनका सब कुछ छीन लिया । सार्कारिना  जैसे विलक्षण रंगमंच का निर्माण उन्होंने इसी सपने को साकार करने के उद्देश्य से बनवाया था । सार्कारिना भारत का एक मात्र मंच है जो गोलाकार है । जिसके चारो तरफ दर्शक गोलाई में बैठ कर मंचित नाटक का लुफ्त लेते है । अस्सी के दशक में जब फिल्म हावी था और दर्शको से नाटक छुटता जा रहा था तब अमर बाबु ने रंग मंच को पेशेवर रूप अख्तियार करने का रास्ता सुझाया । रंग मंच के साथ कलाकारों का भी पेशेवर हो जाने पर उनका आर्थिक पक्ष सुद्रीर होगा ऐसा उनका मानना था और आज भी है । इस सोच को उन्होंने खुद ही अजमाना बेहतर समझा और जुट गए ।

Comments

Popular posts from this blog

আচার্য ভরত প্রস্তাবিত অভিনয়রীতি

কাশীর বাঙালী টোলার দ্বীতিয় পাতালেশ্বর