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Showing posts from May, 2011

अरे तरी ; सपाक से सरक जाएगी !

             मामले को जरा सुलझा कर कहता हूँ . कुछ ही दिनों पहले शहर की  नई नवेली मौल में फुर्सत के चंद पल गुजार रहा था ( झुलसती गर्मी से फोफ्ले पड़े तन में मुफ्त की ए.सी. के ठंडक का लेप चढ़ा रहा  था .) पर ये क्या एक नज़ारे की तपिस ने अपनी नजरे सकने को मजबूर कर दिया . जाहिर है नजारा  रंगीन था . सीढियों पर दो आधुनिकता की प्रतिरूप बालाएं ( आधुनिकता की झलक उनके कपड़ो से  मिल रही थी ) बैठी आपस में बाते कर रही थी . मेरी दिलचस्पी उनके लिबास पर थी . उनमे से जो उकडू होकर बैठी थी जिसकी छोटी सी कमीज असमान छूने को व्याकुल तो दुसरे की ट्राउजर,  जमीं में धसने को आतुर . कमल है इतनी निचे, सरक गई तो .... आंखे उस पल की कल्पना से  सिहर उठा और तन पापड़ के जैसा हल्का हो लहराने लगा . अपनी हालत को तब समझा जब बगल  से एक आंटी मुझे धकियाते हुए उन तक पहुची, उनसे मुखातिब हो बोली,"जरा सम्हाल कर बैठो" वो दोनों फटी हुई नजरो से "क्यों"  आंटी से रहा नहीं गया, उनके कानो में ओठ सटाकर कुछ हिदायत दी . आंटी की बात सुन दोनों खिलखि...

acting tips

श्री गौतम चटर्जी द्वारा नाट्य शास्त्र में निहित अभिनय सूत्रों की उत्तर आधुनिक व्याख्या ------  ६. अभिनेता के उच्चार में ही चारो वेदों  का सार समाहित है ! ७. शब्द उच्चार का परिणाम ख़ामोशी हो ! ८. दुसरे चरित्रों का प्रदर्शन अपने मद्ध्यम से करना ! ९. चरित्रों को दर्शको की ओर से निर्माण कर प्रदर्शन की चेष्टा करना ! १०.आंगिक  शक्ति सर्वोपरि , स्मृति शक्ति द्वितीयक !        यहा तो १० सूत्रों का ही उल्लेख किया जा सका और जानने के लिए श्री गौतम चटर्जी की आने वाली किताब 'अभिनय शास्त्र पढ़ सकते है ....  

acting tips

श्री गौतम चटर्जी द्वारा नाट्य शास्त्र में निहित अभिनय सूत्रों की उत्तर आधुनिक व्याख्या ------ १. संवाद संबंधो को उजागर करता है ! २. व्यंजन विचार है और स्वर भाव ! ३. एक रस से दुसरे रस में जाने के दौरान पहले रस में  ठहरने की कोशिस ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए ! ४. एक रस में ठहरने की कोशिस के दौरान एक अभिनेता जो कुछ भी करता है वही दर्शको  के लिए दर्शनीय है ! ५. ठहरना एक कठिन काम है पर अभिनेता के लिए वरदान है; जब वह किसी भाव में ठहरने की कोशिस     करता है तब इश्वर उससे कुछ और कराता है वही उपज ( improvisetion ) है  !

guru naman

बादल बाबू को समर्पित फिल्म जिसका निर्माण सर गौतम चटर्जी ने जिस मेहनत से बनाई है, उसे देखने के  कौतुहल से खुद को रोक नहीं पा रहा हु ! भारत पर यह आरोप रहा है की वो अपने इतिहास को याद नहीं रखता ! इन परिस्थिति में गौतम सर की बादल बाबू पर बनी फिल्म उन्हें श्रधांजलि के साथ-साथ उपरोक्त अपवाद से भी कुछ हद तक हमें निजात देगी ! अतः आप सभी से आग्रह है की इस फिल्म को जरुर देखे !   

guru naman

१३ मई २०११ शाम ७.०० बजे रोज की तरह हमलोग शांति वन (न्यू कालोनी का पार्क) में theatrical  exersise में व्यस्त थे कि अचानक साइलेंट  मोड पर रखे फोन की स्क्रीन पर नजर पड़ी . फ़ोन को ओन कर कानो से लगाया उस तरफ से खबर मिली बादल (सुधीन्द्र) सरकार नहीं रहे........ ७०के दशक में बादल दा ने ही नाटक को साधारण जनों के करीब ला दिया, जनता और अभिनेताओ के बिच कि बाधा (प्रोसीनियम) को दरकिनार कर गली, नुक्कड़, पार्क, छत जहा कही भी जगह मिले लोग जुटे बादल दा ने अपने लिखे नाटको को अपनी संस्था के प्रशिक्छित कलाकारों के माध्यम से खेला .