'बुद्ध पूर्णिमा के बहाने गेशे जम्पा की बात'

आज बुद्ध पूर्णिमा भी है और चन्द्र ग्रहण भी। विश्व के वर्तमान हालात को भी इसी प्रतीक के माध्यम से समझ सकते हैं कि पूरे विश्व में एक वायरस ने ग्रहण लगा रखा है। जैसे ज्ञान पर माया का आवरण सदैव होता है। चन्द्र ग्रहण तो प्रकृति के नियम से छट भी जाएगा, पर माया आवरण को हटाने के लिए प्रयत्न करना होगा। इसी आवरण को भेद कर बुद्ध ने बुद्धत्व को पाया था। आज कोई भी बुद्धत्व को लालायित नहीं अपना कुछ भी त्यागने को तैयार नहीं। पर एक देश है जहां आज भी घर का एक लड़का भिक्षु बनना स्वीकारता है। वह जगह है तिब्बत। तिब्बत की बात क्यों! ये सोच रहे होंगे आप। पर मुझे लगता है आज भी सही मायने में बुद्ध की शिक्षा वहीं बसी हुई है। पर तिब्बत के हालात कुछ ऐसे हैं कि उसे बयां करना बड़े जिगर का काम है। बस एक राह सुझा सकता हूँ, यदि मंटो के 'टोबा टेक सिंह' को पढ़ सकते हैं, तो कुछ हद तक समझ जाएंगे। चीन उसपर ऐसी ज्यात्तियां बरपा रहा है, जो असहनीय हो चला है। वो तो बुद्ध के विचारों ने ही तिब्बत को इतनी शक्ति दे रखी है कि वह हिंसक प्रतिरोध न करके भी अपनी जमीन से चिपक हुआ है, नहीं तो कब का उखड़ गए होता। ये अहिंसक प्रवित्ति ...