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Showing posts from April, 2020

1980-90 दशक की फिल्में और उनका गीत संगीत

1980-90 दशक की फिल्में और उनका गीत संगीत संग्रह और सम्पादन जयदेव दास 1980 --------- द बर्निंग ट्रेन रेलवे इंजीनियर, विनोद, भारत की सबसे तेज़ यात्री ट्रेन, सुपर एक्सप्रेस को हरी झंडी देता है। लेकिन उसका प्रतिद्वंद्वी, ट्रेन में बम लगा देता है और विस्फोट के कारण ट्रेन को रोकना मुश्किल हो जाता है। रिलीज़ दिनांक: 20 मार्च 1980 (भारत) निर्देशक: रवि चोपड़ा संगीत: राहुल देव बर्मन पल दो पल का साथ हमारा मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले वादा है वादा किशोर कुमार, आशा भोसले मेरी नजर है तुझ पे आशा भोसले पहली नजर में हमने अपना दिल किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, ... किसी के वादे पे क्यों ऐतबार आशा भोसले तेरी है जमीन, तेरा आसमान पद्मिनी कोल्हापुरे, पूर्णिमा कर्ज मोंटी को अपने पिछले जीवन के बारे में चौंकाने वाला सच पता चलता है कि उसकी पैसा ऐंठने वाली बीवी ने ही उसकी हत्या की थी और उसके परिवार को बेघर कर दिया था। वह चीजें सही करने का फैसला करता है। रिलीज़ दिनांक: 11 जून 1980 (भारत) निर्देशक: सुभाष घई संगीतकार: प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा एक हसीना थी किशोर कुमार कमाल...

पद्मश्री निरंजन गोस्वामी

**पद्मश्री निरंजन गोस्वामी** मूक अभिनय के शलाखा पुरुष के अनुभवों को महाराष्ट्र की संस्था ब्लैक सॉइल ने संजोया है। अभी अभी उसका 'प्रोमो' जारी किया गया। जिसमें निरंजन दादा अपने अनुभवों की झोली से एक एक मोती निकलते दिख रहे हैं। इस साक्षात्कार निर्माण का निर्देशन डॉ सुरभि बिप्लव ने कुशलता से किया है। सिनेमेटोग्राफर राजदीप जी ने इसके छायांकन का भार ही नहीं वहन किया अपितु जटिल तकनीकी पक्ष को भी निखारा है। कुछ ही दिनों में पूरी कृति सबके सामने होगी। हम आशान्वित व प्रतीक्षारत हैं। निरंजनगोस्वामी निरंजन गोस्वामी भारतीय माइम कलाकार और मंच निर्देशक हैं, जिन्हें भारत में माइम कला रूप को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है । वह इंडियन माइम थिएटर के संस्थापक हैं , जो एक समूह है, जो 'मूक अभिनय" की कला को बढ़ावा देता है । उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1960 के दशक के अंत में बहुरूपी के साथ की थी, जो बंगाल की स्थानीय थिएटर ग्रुप है, लेकिन बाद में रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से थिएटर कोर्स में शामिल हुए। उन्होंने माइम को बढ़ावा देने के लिए इंडियन माइम थिएटर की स्थापना की तथा भार...

film editing

आज हम #फ़िल्म सम्पादन में '#निरंतरता' बनाये रखने को समझेंगे। उदाहरण के लिए हमने #अजयदेवगन अभिनीत व #स्वास्थ्य_विभाग_भारत_सरकार द्वारा निर्मित #लघुचित्र '#आरोग्यसेतु' की मदद ली है (वर्तमान समय में जिस महामारी से हम जूझ रहें हैं, उससे लड़ने के लिए यह एप कारगर साबित होगा)। जिसमें देवगन साहब ने दोहरी #भूमिका का निर्वहन किया है।  फ़िल्म की निरंतरता को बनाये रखने के लिए इस फ़िल्म में जिन व्याकरणों को ध्यान में रखा गया है, उन पर हम आज चर्चा करेंगे। सम्पादन में निरंतरता बनाए रखने के लिए #सम्पादक को दो शॉट्स को जोड़ना या काटना इस प्रकार से होता है कि दर्शकों का ध्यान भंग न हो। कथाचित्र को वो बिना किसी बिघ्न बाधा के सिर्फ देखे ही नहीं उसमें लीन होता जाए कि कथा के संग बहता जाए कि वह नैसर्गिक लगे। कोई जर्क न हो। यही निरन्तरता का #तत्व है। यशार्थ मंजुल सर (Yasharth Manjul) ने अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा कि फ़िल्म तकनीक में 'निरन्तरता सम्पादन continuity editing' कोई #सिद्धांत नहीं बल्कि एक #व्याकरण है। उक्त लघु चित्र में भी इस व्याकरण का प्रयोग बखूबी दिखता है। Conti...

कृतियों पर आधारित हिंदी फिल्में

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आज शेक्सपियर पुण्यतिथि है ************************** उनकी कृतियों पर आधारित हिंदी फिल्में मकबूल (2004) --------- अंडरवर्ल्ड डॉन के एक वफादार गुर्गे, मकबूल को अपने बॉस की प्रेमिका, निम्मी से प्यार हो जाता है। निम्मी, मक़बूल को, डॉन को मारकर अगला डॉन बनने के लिए उकसाती है। रिलीज़ दिनांक: 30 जनवरी 2004 (भारत) निर्देशक: विशाल भारद्वाज मुख्य कलाकार: पंकज कपूर, तब्बू व इरफ़ान खान पुरस्कार: राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता, ज़्यादा संगीतकार से फिल्मकार बने विशाल भारद्वाज के अनुसार उनकी फिल्म मकबूल मानवीय रिश्तों की कहानी है और अंडरवर्ल्ड केवल कथानक की पृष्ठिभूमि के रूप में है। श्री भारद्वाज ने इनकार किया कि उन्होंने 'गॉडफादर' या अन्य किसी फिल्म की नकल करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि अंडरवर्ल्ड ने हमेशा उन्हें अचंभित किया है और वह एक ऐसी फिल्म बनाना चाहते थे जिसमें अंडरवर्ल्ड की पृष्ठिभूमि हो लेकिन नाटकीय हो इसीलिए उन्होंने मैकबेथ नाटक का कथानक उठाया। श्री भारद्वाज ने कहा कि मूल कहानी वही है लेकिन इसमें थोड़ा सा बदलाव किया है। शेक्सपियर की ...

हिंदी रंगमंच दिवस और यथार्थ

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आज चैत्र शुक्ल ११ संवत २०७७ है अतः हिंदी पंचांग के अनुसार हिंदी का पहला मंचित नाटक शीतला प्रसाद कृत नाटक 'जानकी मंगल' की प्रस्तुति १५२ वर्ष पहले बाबू ऐश्वर्य नारायण सिंह के प्रयत्न से 'बनारस थिएटर' में बड़ी धूम धाम से खेला गया। वहीं पहला हिंदी नाटक 'नहुष' (जो भारतेंदु जी के पिता जी ने लिखी है) को मानते हैं। बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र ने प्रेक्षालय का नाम तो दिया पर वह बनारस के किस स्थान पर स्थित था उल्लेख नहीं किया। जिस समय वह ये लेख लिख रहे होंगे तब 'बनारस थिएटर' इतना जाना पहचाना नाम था कि उसके नाम का उल्लेख होते ही लोग उसका अनुमान उसी प्रकार से लगा लेते होंगे, जिस प्रकार आज बनारस के हर रँगप्रेमी 'श्री नागरी नाटक मण्डली' कहते ही कबीर चौराहा के पिपलानी कटरा के समीप के स्थान विशेष को ही जानता है। पर मजे की बात यह है कि यह नाम एक रंग मण्डली का है जिसकी स्थापना 1909 ईसवी में हुई। पर वहां स्थित प्रक्षागृह का असली नाम 'मुरारीलाल मेहता प्रक्षागृह (1960) है, जो उतना प्रचलित नहीं। अब कुछ लोग यह दावा करते हैं कि बनारस के केंटोनमेंट क्षेत्र मे...