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Showing posts from March, 2020

मोरा गोरा रंग लई ले

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  बन्दिनी १९६३ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसके निर्माता और निर्देशक बिमल रॉय थे जिन्होंने दो बीघा ज़मीन और मधुमती जैसी प्रतिष्ठित फ़िल्में बनायीं थीं। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, धर्मेन्द्र और नूतन। बॉक्स ऑफ़िस में इस फ़िल्म ने ठीक ठाक ही प्रदर्शन किया था। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में इसे उस वर्ष छ: पुरस्कारों से नवाज़ा गया था जिसमें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार भी शामिल था। यह फ़िल्म एक नारी प्रधान फ़िल्म है, जो कि हिन्दी फ़िल्मों में कम ही देखने को मिलता है। सुजाता के बाद बिमल रॉय की यह दूसरी नारी प्रधान फ़िल्म थी। बंदिनी की कहानी कल्यानी (नूतन) के इर्द-गिर्द घूमती है। यह शायद अकेली ऐसी फ़िल्म है जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांव की साधारण महिलाओं का योगदान दर्शाया गया हो।  इस फ़िल्म के संगीतकार सचिन देव बर्मन हैं तथा गीतकार शैलेन्द्र और गुलज़ार हैं।  फ़िल्म में पार्श्व संगीत का भार राहुल देव बर्मन ने सम्हाला  गीतकार के रूप में यह गुलज़ार की पहली फ़िल्म थी। उन्होंने इस फ़िल्म के लिए मोरा गोरा रंग लई ले लिखा है। साथ ही सहा...

आंगिकाभिनय

आंगिकाभिनय सर्वे हस्तप्रचाराश्च प्रयोगेषु यथाविधि। नेत्रभ्रूमुखरागाद्य: कर्त्तव्य व्यञ्जिता बुधै: ।। ना. शा. ९/१६४ हस्त प्रचारों को प्रयोग के समय शास्त्र निदर्शित विधि के साथ नेत्र, भौंहे, मुखराग आदि द्वारा विद्वत व्यक्त करें। यत्र व्यग्रा वु भौ हस्तो तत्तद दृष्टि विलोकनै: । वाचिकाभिनयं कुर्याद विरामेरर्थ दर्शकै: ।। ना. शा. ९/१७४ वाचिक अभिनय के समय विभिन्न दृष्टियों तथा अवलोकन क्रियाओं को हस्त क्रियाओं के अनुसार इस प्रकार दक्षता पूर्वक निदर्शित करना चाहिये जिससे कि उनके द्वारा प्रदर्शित वाचिक अभिनय विराम होने पर भी अर्थों की (पूर्ण) अभिव्यक्ति हो। पाद योर नुगौ चापि हस्तौ कार्यो प्रयोकतृभि:। ना.शा. १३/४४ यतो हस्त स्ततो दृष्टिर्य तो दृष्टि स्ततो मनः। यतो मन स्ततो भावो यतो भाव स्ततो रसः।। अ. द. ३७ पैरों की गति का हाथों द्वारा अनुशरण होना चाहिए। जिधर हाथ हो दृष्टि उसका अनुशरण करे। दृष्टि पर मन हो। जहाँ मन हो वहीं भाव और जहाँ भाव वहीं रस। नाट्यशास्त्र || अभिनयदर्पण

शिशुस्मृति : कठपुतली का खेल

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शिशुस्मृति : कठपुतली का खेल कठपुतली कलाकार मिथिलेश दुबे से रंगकर्मी जयदेव दास द्वारा लिए गए साक्षात्कार के मुख्य अंश।  बचपन की स्मृतियों में कुछ ठहरा हो न हो एक स्मृति बहुत गहरे ही रची बसी है। स्कूल में इनसे पहली मुलाकात हुई थी। एक छोटे से मंचपर ये पुतलियां न जाने कैसे नाचती गति थी। शिशुमन व नैन उन अदृश्य धागों को ढूंढता कम था और इतराता ज्यादा था। पर आज जब उस और लौटता हूं तो उन कलाकारी पंजो को शून्य पाता हूँ, जिन के इशारों पर वे कथौतलियाँ डोलती थी। पंजों से पूछने पर बताती हैं कि अब बच्चों को इनसे मोह नहीं। क्या ये सच है कि शिशु मन इतना स्मार्ट हो गया है कि कल्पलोक से विरत होना चाहता होगा। नहीं हमने ही उनके हाथों में प्लास्टिक के खिलौने दिए और अब तो मोबाइल से उनका जी बहला रहें हैं। इनमें उन नवांकुरों का क्या कुसूर? कठपुतली का खेल बच्चों के लिए एक खेल तो है पर इन्हें चलना या संचालित करना कोई बच्चों का खेल नहीं। इसे एक निपुण शिल्पी या कलाकार ही चला सकता है। इसलिए आज ये एक कला रूप है। कठपुतली कला एक अत्यंत प्राचीन कला है। जिसे नाट्य कला से भी जोड़कर देखा जाता है। आज हमारे बीच कुछ...

विश्व रंगमंच दिवस

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आज विश्व रंगमंच दिवस है। आप सभी रंग सुधियों को बधाई। रंग दिवस की इस शुभ बेला में अपने वर्तमान को जीते हुए अपने बीते हुए दिन को भी याद करना अनिवार्य है। ये कर्तव्य भी है। आने वाले दिनों में हम ऐसे कुछ रंग ऋषियों को याद कर। खुद को समृद्ध करेंगे। जयशंकर प्रसाद कृत नाटक ध्रुवस्वामिनी का एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति अभिनेत्री डॉ सुरभि विप्लव अभिनेता जयदेव दास उपेंद्र कृष्ण तारकेश्वर कृष्णाक