मृणाल सेन का सिने भुवन - गिरीश कासाराभल्ली

भारतीय सिनेमा के चाहने वाले हमारी उतनी ही पसंद करते हैं, उतनी ही मृणाल सेन की फिल्में देखने का मौका नहीं मिलता - बदकिस्मती के सिवा और क्या कहते हैं? हमारे देश में फिल्म देखने का सिस्टम ही गड़बड़ है। हमारा दुर्भाग्य क्या है, जानते हैं? हम यूरोपियन 'मास्टर्स' जैसी फिल्में देखते हैं, उतनी ही कम भारतीय 'मास्टर्स' फिल्में देखती हैं। इसलिए, शुरुआत में ही एक बात मन लेना अच्छा है। मैंने मृणाल सेन की कुछ फिल्में देखी हैं, और उनमें से ज्यादातर एक ही देखी गई हैं। परिणामस्वरूप, मैं इस आलेख में इन छवियों को देखने से कुछ खंडित भावों को प्राप्त करना या उनका दस्तावेज़ीकरण करना पसंद करूंगा। सच कहूं तो मैं सत्यजीत रे या ऋत्विक घटक की फिल्मों से ज्यादा पेश किया गया था, जिनके साथ मृणाल सेन का नाम बंगाली फिल्मों की महान टिकड़ी के रूप में लिया जाता है। मैंने जितनी बार सत्यजीत-ऋतिक की फिल्में देखीं, उतनी बार मुझे मृणाल सेन की फिल्में देखने का मौका नहीं मिला। मैंने उनकी 'भुवन सोम' से पहली फिल्में नहीं देखी हैं, हालांकि मैंने उनके बारे में कई-कई बातें पढ़ी हैं। फिर, मैंने 'आमार भु...