भारतीय सिनेमा का अनन्य कथाकार 'शरतचंद्र'

15 सितंबर 1876 को जन्मे श्री शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय 20 वीं शताब्दी के प्रमुख बंगाली उपन्यासकार और लघु कथाकार हैं। ऐसे में हम इस विशेष कथाकार के शार्द्ध शतवर्ष जयंती मनाए जाने के द्वार पर खड़े हैं।ऐसे में उनके साहित्यिक सेवाओं के साथ फिल्मों के उत्थान में उनकी कृतियों का क्या योगदान रहा है देखें। सिनेमा का जन्म 1895 ई में लुमियर बन्धु के सौजन्य से भले हुई हो। पर भारत में उसे चलना दादा साहब फाल्के ने सिखाया तो बोलना आर्देशिर ईरानी साहब ने। जब सिनेमा ने बोलने की कला सीख ली तो जरूरत पड़ी किस्सों-कहानियों की। ऐसे में न्यू थिएटर के प्रमथेश बरुआ साहब ने जिस कथाकार की लंबी कहानी चुनी, वो थे भारत के अमर कथाकार श्री शरतचंद्र चट्टोपाध्याय। जिनकी कहानियां जैसे भारतीय सिनेमा के लिए वरदान हो। 'बिराज बहु", "मंझली दीदी", "वैंकुठेर विल (वैंकुठ का वसीयतनामा) पर 1962 में राष्ट्रपति सम्मानित फ़िल्म 'सौतेला भाई' का निर्माण हुआ। उनके उपन्यास "परिणीता" पर उसी नाम से दो बार फ़िल्म बानी। इन कहानियों, उपन्यासों से ये बात तो सामने आ ही जाती है कि मानव मन विशेषतः स्त्री मन ...